ऊधमसिंहनगर पुलिस ने रुद्रपुर फर्जी डिग्री गिरोह के सरगना नवदीप भाटिया को गिरफ्तार कर लिया। उसको रिमांड पर लेकर पुलिस मामले के पूरी तह तक जाएगी। एसएसपी ने गैंगस्टर एक्ट के तहत करवाई के साथ उसकी संपत्ति का पता लगाने के निर्देश दिए हैं।
शुक्रवार दोपहर पुलिस आफिस में पर्दाफाश करते हुए एसएसपी मंजू नाथ टीसी ने बताया 10 नवंबर मेट्रोपोलिस कॉलोनी में फर्जी डिग्री बनाने वाले गिरोह के दो सदस्यों को पकड़ा गया गया था। सरगना नवदीप भाटिया पुत्र गुरशरण भाटिया निवासी पीलीभीत मौके से फरार हो गया था। पुलिस लगातार नवदीप की तालाश में दबिश दे रही थी। उसके विदेश भागने की संभावना के चलते लुक आउट सर्कुलर भी जारी कर दिया था।
गुरुवार शाम नवदीप को पुलिस ने संजय वन के पास से गिरफ्तर कर लिया। एसएसपी मंजूनाथ ने कहा नवदीप द्वारा फर्जी डिग्री के माध्यम से अथाह संपत्ति एकत्र की गई है। उसके संपत्ति का पता लगाया जा रहा है। उसके विरुद्ध गैंगस्टर की करवाई भी की जाएगी। मेट्रोपोलिस के टावर एच-9 के फ्लैट नंबर दो में पिछले साल अक्तूबर से फर्जी डिग्री-डिप्लोमा, अंकतालिका व सर्टिफिकेट बनाने का धंधा चल रहा था। गिरोह का सरगना रुद्रपुर आवास विकास निवासी नवदीप भाटिया है, जो कीरत ट्रेडिंग कंपनी नाम की कंप्यूटर की दुकान चलाता है। उसने फर्जी डिग्री-डिप्लोमा बनाने के लिए दो गौरव चंद निवासी चूनाभट्टा थाना बनबसा (चंपावत) और अजय कुमार निवासी राजीव नगर, डोईवाला (देहरादून) को नौकरी पर रखा था।
बीते दस नवंबर की रात दोनों को गिरफ्तार किया गया था। नवदीप ने दोनों के लिए मेट्रोपोलिस के एक फ्लैट में ठहरने व खाने की व्यवस्था कर रखी थी। वहीं पर दोनों युवक फर्जी डिग्री-डिप्लोमा, अंकतालिका व सर्टिफिकेट बनाते थे। एसएसपी ने बताया कि जब विदेश जाने का मामला होता था तो मोटी रकम के लालच में आरोपी विलियम कैरे यूनिवर्सिटी के दस्तावेज के सत्यापन की जिम्मेदारी भी ली जाती थी। इस मामले में विलियम कैरे यूनिवर्सिटी के दो कर्मचारी गौरव अग्रवाल और जितेंद्र उर्फ सुखपाल शर्मा का नाम भी सामने आया है। पुलिस ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 474 व 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली है। नवदीप की तलाश के लिए पुलिस टीम ने उसके घर में दबिश दी लेकिन वह फरार हो गया था।
विदेश जाने वालों के लिए डिग्री के सत्यापन की जिम्मेदारी
निजी संस्थानों, फैक्ट्री और कंपनियों में युवाओं को रोजगार दिलाने के नाम पर फर्जी डिग्री और डिप्लोमा बनाए जाते थे। ऐसे डिग्री-डिप्लोमा के लिए आरोपी युवाओं से 15 से 20 हजार प्रति डिग्री डिप्लोमा के हिसाब से लेते थे। जालसाज इन डिग्री और डिप्लोमा को सरकारी काम में लगाने के लिए युवाओं से पहले ही मना कर देते थे। यदि कोई युवा विदेश जाकर नौकरी करने की बात करता था तो आरोपी मोटी रकम लेने के बाद विलियम कैरे यूनिवर्सिटी के दस्तावेज के सत्यापन की जिम्मेदारी भी लेते थे।
डिग्री-डिप्लोमा में थ्रीडी होलोग्राम और बारकोड
फर्जी डिग्री-डिप्लोमा, मार्कशीट और सर्टिफिकेट थ्रीडी होलोग्राम, बारकोड व क्यूआर कोड से लैस होते थे। विदेश जाने वाले युवाओं के लिए यह बारकोड स्कैन होता था और छात्र का नाम भी दिखाता था। इन डिग्री-डिप्लोमा को उच्च क्वालिटी प्रिंटर से बनाया जाता था।