ऑनलाइन गेम खेलते-खेलते 12 वीं के छात्र ने बेडशीट से लगा ली फांसी, मचा कोहराम

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ऑनलाइन गेम खेलते हुए 12वीं के छात्र ने रविवार की रात बेडशीट का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली। बगल के कमरे में सो रही उसकी बड़ी बहन को सोमवार की सुबह तब जानकारी हुई, जब देर तक न उठने पर वह उसे जगाने गई। कुशीनगर जिले के हाटा थाना क्षेत्र के सिक्टा गांव निवासी सीताराम सिंह का पुत्र आदर्श सिंह (18) अपनी बड़ी बहन निधि सिंह के साथ गुलरिहा क्षेत्र के शिवपुर शाहबाजगंज कलेक्ट्री टोला में किराए पर कमरा लेकर पढ़ाई करता था।

आदर्श, एमपी इंटर कॉलेज का छात्र था, जबकि बहन फातिमा अस्पताल में डीएमटी नर्सिंग का कोर्स करती है। निधि ने पुलिस को बताया कि रात में दोनों साथ में खाना खाकर अपने-अपने कमरे में सोने चले गए। रात करीब 11 बजे उसने देखा तो भाई ऑनलाइन गेम खेल रहा था। गेम बंद कर सोने की बात कह कर वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर सो गई। सुबह सात बजे आदर्श को उठाने गई तो दरवाजा खोलते ही उसे फंदे से लटका देख चीख पड़ी। गुलरिहा और शाहपुर पुलिस काफी देर तक सीमा विवाद में उलझी रही।

इकलौते बेटे की मौत से मातम

आदर्श अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था। पढ़ने में बचपन से मेधावी था और बास्केटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था। पिता वाहन चलाते हैं और चाचा गोविंद सिंह गांव के प्रधान हैं। आदर्श की खुदकुशी से परिवार में कोहराम मच गया।

गेम में जिंदा रहने को पैसा खर्च करने के साथ लगाते हैं जान की बाजी

ऑनलाइन गेमिंग में फंसे किशोरों ने युद्ध के मैदान की तरह अपनी एक दुनिया बना ली है। इस दुनिया में वह अपने पसंदीदा कैरेक्टर को सैनिक के रूप में पेश कर रहे हैं और इसकी कीमत या तो वह अपनी जान से चुका रहे हैं या फिर पापा की जेब से सेंधमारी कर या चोरी कर चुका रहे हैं। युद्ध लड़ने के लिए बम-तोप गोला-बारूद और असलहों की ऑनलाइन खरीददारी करते हैं। अंत तक बने रहने के लिए शरीर पर कचव धारण कर रहे हैं तो वहीं युद्ध में मारे जाने पर संजीवनी बूटी पीकर अपने कैरेक्टर को जिंदा भी कर रहे हैं। इसमें वे हजारों रुपये खर्च कर घरवालों को कंगाल बना रहे हैं।

यह बुरी लत ऐसी कि उसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नहीं करते। अब तक की जांच में पता चला है कि 12वीं के छात्र 18 साल के आदर्श सिंह की जान भी ऑनलाइन गेमिंग में के कारण हुई है। वह टार्गेट चुकने पर जिंदगी को दांव पर लगा बैठा या फिर गेम में इनता कुछ गंवा दिया कि उसने मौत को गले लगा लिया, अब यह सब पुलिस की जांच में ही सामने आएगा। पर अभी तक की जांच में ऑनलाइन गेमिंग के अलावा मौत का कोई और कारण सामने नहीं आया है। दोस्तों ने बताया कि आदित्य पढ़ने में होनहार था पर गेम भी ज्यादा खेलता था। बहन ने भी बताया कि रात में करीब 11 बजे जब वह उसके पास गई तो पबजी गेम खेल रहा था। पैसा हारने जैसी बात अभी तक सामने नहीं आई है।

साइबर एक्सपर्ट की मानें तो ज्यादातर घरों के बच्चे ऑनलाइन गेम में फंसे हुए हैं। पीएमएल गेमिम, फायर वॉल, फायर गेम सहित दर्जनों गेम गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर किशोर खेल रहे हैं और इसमें पैसा भी गंवा रहे हैं। वहीं पबजी जैसे गेम जिन लोगों ने डाउनलोड कर रखा है वह भी उसे खेल रहे हैं। खुदकुशी करने वाला छात्र आदर्श भी पबजी गेम ही खेल रहा था।

मोबाइल लैपटॉप पर रखें नजर

साइबर सेल विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मोबाइल या लैपटॉप दिए हैं तो यह भी निगरानी करें कि बच्चा मोबाइल या लैपटॉप का सिर्फ पढ़ाई में ही इस्तेमाल कर रहा है या फिर और भी कुछ कर रहा है। कहीं वह ऑनलाइन गेम के चक्कर में तो नहीं फंस गया है। बच्चे रुपये मांगे तो इसके बारे में भी जरूर पूछें। ऑनलाइन गेम की शुरुआत छोटी रकम से होती है। जब लत लगती है तो फिर हजारों रुपये खर्च करने लगते हैं।

…जब नशा बन जाता है गेम

मनोवैज्ञानिक डॉ. अपर्णा पाठक बताती हैं कि ऑनलाइन गेम किसी नशा से कम नहीं है। इसका चस्का लगा तो फिर जीतने के लिए खेलने वाला कुछ भी करता है। गेम खेलने वाले सोचते हैं कि वह गेम खेल रहें पर गेम उन्हें खेलाता है। ऑनलाइन गेम दर्जनों हैं। पबजी का ही उदाहरण लें जहाज में बैठे सैनिक को कूदाने में भी पैसा लगता है। पैसा खर्च किए तो जल्दी कूदेगा वरना प्रतिद्वंदी आगे निकल जाएगा। हथियार,गोला बारूद का तो पैसा जरूरत पर खर्च करना ही पड़ता है। एक स्टेज ऐसा आता है कि लगता है अब जीत सकते हैं पर वहां भी पैसा खत्म हो जाता फिर पैसे की जरूरत पड़ती है और यह लत इतनी ज्यादा हो जाती है कि गेम खेलने वाला इसके लिए घर में चोरी करने पर उतारू हो जाता है या हार बर्दाश्त नहीं कर पात और मौत को गले लगा लेता है। ऐसे में बच्चों की काउंसिलिंग कर गेम से बचाने की जरूरत है।

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