आश्विन मास के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन ‘पितृपक्ष’ के नाम से जाने जाते हैं। पितृपक्ष श्राद्धों के लिये निश्चित पंद्रह तिथियों का एक समूह है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का ऋण श्राद्धों द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिये पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
पूर्णिमा में देह त्यागने वालो का श्राद्ध कब करे : पूर्णिमा पर देहान्त होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने की विधि बताई गयी है।
श्राद्ध क्या है : ‘श्राद्ध’ का शाब्दिक अर्थ है, श्रद्धासे जो कुछ दिया जाए।
श्राद्ध क्यों करे : पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण पूरे वर्ष तक प्रसन्न रहते हैं।
श्राद्ध कब करे और तर्पण कब करे : पितृपक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं, किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं तथा ऋषियों को जल देने के अनन्तर पितरों को जल देकर तृप्त किया जाता है। यद्यपि प्रत्येक अमावास्या पितरों की पुण्यतिथि है। तथापि आश्विन मास की अमावास्या पितरों के लिये परम फलदायी है।
माताओ का श्राद्ध कब करे और कहा करे : पितृपक्ष की नवमी को माता के श्राद्ध के लिये पुण्यदायी माना गया है। माताओ के लिये काठियावाड़का सिद्धपुर स्थान परम फलदायी माना गया है। इस पुण्य क्षेत्र में माता का श्राद्ध करके पुत्र अपने मातृ-ऋण से सदा-सर्वदा के लिये मुक्त हो जाता है। यह स्थान मातृ गया के नाम से भी प्रसिद्ध है।
गया का श्राद्ध से क्या सम्बन्ध है : श्राद्ध के लिये सबसे पवित्र स्थान गया तीर्थ है। पितरों के मुक्तिनिमित्त गया को परम पुण्यदायी माना गया है।