बेटे को तैयार कर स्कूल भेजते समय गोंडा की वंदना सिंह को अचानक एक आईडिया आया। इस विचार ने न सिर्फ उनकी पूरी जिंदगी बदली, बल्कि अन्य कई महिलाओं के रोजगार का रास्ता बनाया। कभी परिवार को संभालने के लिए उन्होंने दो निजी स्कूल मे शिक्षिका की नौकरी की। एक दिन स्वावलंबी बनने का संकल्प लिया। थोड़ी सी पूंजी लगाई और बच्चों की ड्रेस सिलने का कारोबार शुरू कर दिया।
मुख्यालय के मालवीय नगर की रहने वाली वंदना सिंह विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के पारंपरिक परिधान व पोशाकें तैयार कर रही हैं। पांच वर्षों में उनका व्यवसाय जम चुका है। समूचे देवीपाटन मंडल में उनके यहां ऐसे परिधानों व पोशाको के आर्डर खूब आ रहे हैं। असम हो या मेघालय, पंजाब हो तमिलनाडु, सेना हो या कव्वाली गायक, सभी के लिए परिधान उनकी वर्कशॉप में तैयार होते हैं। यही वजह है कि स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या वार्षिकोत्सव, उनके वर्कशॉप में बने परिधानों की मांग होती है। काम बढ़ा तो न सिर्फ पति राजेश्वर सिंह हाथ बंटा रहे बल्कि दो बेटियों के साथ आसपास की दर्जनो महिलाओं को इस हुनर से स्वावलंबी बना रही है।
पांच साल पहले 25 हजार की लागत से की शुरुआत
वन्दना सिंह ने वर्ष 2017 में यह व्यवसाय 25 हजार की पूंजी से शुरू की है। इससे पहले उनकी निजी स्कूल में टीचर थीं जहां उनको मात्र छह से सात हजार रुपये पारश्रमिक मिलता था। उनसे हस्ताक्षर अधिक वेतन पर कराए जाते थे। अनावश्यक रूप से अतिरिक्त कार्य कराया जाता था जिसका कोई अलग से भुगतान भी नहीं मिलता था। काम के बोझ से इतना थक जातीं कि उनकी दिनचर्या प्रभावित होने लगी। ऐसे में आत्मनिर्भर बनने का निर्णय लिया। मौजूदा समय में उनके इस व्यवसाय से तीन दर्जन से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। उनकी वर्कशॉप में कई महिलाएं व पुरुष 18 हजार से 20 हजार रुपये तक कमा रहे हैं।
हुनरमंद महिलाओं का बढ़ रहा कुनबा
वन्दना सिंह बताती हैं कि अब तो दूर दराज की हुनरमंद महिलाओं से उनका कुनबा बढ़ रहा है। उनसे जुड़ी महिलाओं को वही काम सौंपा जाता है जो उनको आता है। साथ ही वाजिब पारश्रमिक भी मिलता है। उनके लिए जरूरी नहीं कि रोजाना वर्कशॉप आएं। उनसे कहा जाता है कि जब समय मिले आ जाएं, या घर में ही आईटम तैयार कर लें।