पितरों की शांति एवं उनके उद्धार के लिए इस पितृ पक्ष क्या करे : जाने वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से

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मृत्यु अपने आप में एक बड़ा रहस्य है, उतना ही बड़ा एक और रहस्य है की मृत्यु के बाद हमे कोन सी गति मिलेगी – अधोगति या शुभगति। हर कोई मृत्यु के बाद की कल्पना करता है और अपने जीवन में ऐसे कर्म करता है की उसे शुभगति प्राप्त हो। अपने पितरो की शुभगति के लिए हम भी कुछ कर सकते है। जैसे की हम आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को व्रत कर सकते है जो की इस वर्ष 21 सितम्बर को पड़ेगा। 

डॉ सुमित्रा – वास्तु शास्त्री

माहात्म्य : इस एकादशी का व्रत करने से अधोगति को प्राप्त पितृगण शुभगति को प्राप्त करते हैं, अर्थात पितरों का उद्धार होता है। भटकते हुए पितरों को गति देने के लिए इंदिरा एकादशी की जाती है। इस व्रत की कथा को सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। कथा पढ़ने और सुनने के प्रभाव से उसे सब पापों से छुटकारा मिल जाता है।

इस दिन की व्रत की विशेषता : पुरुषों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, एकादशी महापुण्य देने वाली, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली है। व्रती इस लोक के सब भोगों को भोगकर अंत में विष्णुलोक जाकर चिरकाल तक निवास करता है। 

इस व्रत में क्या क्या वर्जित है : इस व्रत में अन्न का सेवन वर्जित किया गया है। सब भोगों से परहेज करे। 

इंद्रा एकादसी से जुडी श्री ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा

सतयुग में महिष्मतीपुरी में इंद्रसेन नामक एक प्रबल प्रतापी राजा राज करता था। वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य से संपन्न था और भगवान् विष्णु का परम भक्त था। उसके माता व पिता जीवित नही थे। एक दिन अचानक देवर्षि नारद उसके पास पहुंचे, तो राजा ने उनका बहुत स्वागत-सत्कार किया। इस के पश्चात नारद जी ने उन्हें एक चौंका देने वाली बात बताई। मैंने धर्मराज की सभा में तुम्हारे पुण्यवान पिता को पीड़ित देखा है। उन्होंने मुझे तुम तक यह संदेश पहुंचाने को कहा है कि किसी पूर्वजन्म के पाप से तुम्हारे पिता यमराज की सभा में हैं।

अतः तुम इंदिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य उन्हें भेज देना, ताकि उसके प्रभाव से तुम्हारे पिता स्वर्ग जा सकें। नारद से इंदिरा एकादशी के व्रत का पूरा विधि-विधान समझकर राजा ने इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा भाव से संपन्न किया और पितरों का श्राद्ध भी किया। ब्राह्मणों को भोजन कराके दान-दक्षिणा दी, तो राजा पर स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा हुई। उसका पिता समस्त दोषों से मुक्त हो गया और गरुड़ पर चढ़कर वैकुंठ लोक चले गए। अंत में राजा भी इस लोक में सब सुखों को भोगकर विष्णुलोक में चिरकाल तक निवास करता रहा।

जो व्यक्ति व्रत न कर सके वो ये कथा अवस्य पढ़े या सुने।

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