गणेश चतुर्थी इस वर्ष 31 अगस्त को मनाई जाएगी। गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ थ। भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी अगर मंगलवार या रविवार को पड़ जाए तो इसका प्रभाव और ज्यादा बढ़ जाता है। गणेश जी को हिंदुओं का प्रथम पूज्य देवता माना जाता है सनातन धर्म में पंच देवताओं में गणेश जी का नाम प्रमुख है। हिंदुओं के घर में चाहे किसी भी देवता की पूजा क्यों ना हो ,चाहे कोई भी मांगलिक कार्य अनुष्ठान क्यों ना हो, गणेश जी की स्तुति की ही जाती है। व्यक्ति बहुत सारी चीजें कल्पना और परिकल्पना करता है परन्तु जब इन्ही कल्पनाओ को साकार रूप देने की कोशिश करता है तो कहीं ना कहीं विघ्न बाधाएं उसके जीवन में आती ही हैं ,तो इन विघ्न बाधाओं से अगर हम चाहते हैं कि हमारी रक्षा हो और देव शक्ति हमारा साथ दे, तो हमें गणेश जी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। गणेश जी का सर हाथी का है, उधर बहुत लंबा है तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है। मोदक इन्हें बहुत ही प्रिय है। महाराष्ट्र में गणपति की पूजा एक भव्य रुप में और कई दिनों तक चलती है।
दिन के किस कल में होनी चाहिए गणपति की पूजा
दिन के बिच में गणेश जी की आराधना, पूजा होनी चाहिए ऐसा हमारे शास्त्रों का मानना है ,क्योंकि गणेश जी का जन्मदिन मधांतर में हुआ था। तो अगर हम गणेश जी की पूजा आराधना करना चाहते हैं तो कोशिश करके हम दिन के मध्य में ही इनकी पूजा आराधना करें।
पूजन करने की विधि
गणेश चतुर्थी के दिन प्रातः काल स्नान करके,अपने नित्य कर्मों को पूरा करें। फिर अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, मिट्टी, पीतल या गोबर से निर्मित गणेश जी की प्रतिमा को बनाए या बनी हुई प्रतिमा लेकर आएं। कई बार देखा गया है कि हर व्यक्ति के घर में एक से ज्यादा गणेश की प्रतिमा या एक से ज्यादा गणेश जी की फोटो होती है। मूर्तिकार जो भगवान की छवि बनाते हैं और अपनी कलाकारी दिखाते हैं। आजकल मॉडर्न आर्ट की प्रतिमाएं, चित्र सास्त्रीक नहीं भी होते है। हमारे शास्त्रों का यह मानना है और हमारे पुराणों में भी यह कहा गया है कि देवी देवता का जो वर्णित स्वरूप हमारे ग्रंथों में दिया है उसी स्वरूप की आराधना की जानी चाहिए। गणेश जी गजानंद है, लंबोदर है, इसी स्वरूप की आराधना होनी चाहिए। गणेश जी की आराधना में अक्षत और पुष्प का विशेष महत्व है। पहले हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर गणेश जी के नाम के साथ संकल्प किया जाता है। उसके बाद गणेश जी के पास इसे छोड़ दिया जाता है। संकल्प के बाद विघ्नेश्वर का यथा विधि पूजन किया जाता है, दक्षिणा रखी जाती है और आरती की जाती है।
गणेशजी को विशेष रूप से सिंदूर चढ़ाना ही चाहिए, मोदक और दुर्बा की माला अवश्य चढ़ाएं। अगर आप दुर्बा की माला नहीं चढ़ा पाए तो कम से कम 21 दुर्बा दल जरुर चढ़ाएं। गणेश जी के 10 नाम है, उन 10 नामों को बोलते हुए आप दुर्बा चढ़ाएं और हर एक नाम को कम से कम 2 बार बोले। इसके पश्चात दसों नामों का एक साथ उच्चारण कर दुर्बा दाल पुनः चढ़ाये। 21 लड्डू भी गणेश जी को चढ़ाना चाहिए। अब इन 21 लडकों का क्या करना है वह भी हमारे शास्त्रों में उल्लेख किया हुआ है। पांच लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं, पांच ब्राह्मण को दे, एक आप प्रसाद के रूप में ग्रहण करे तथाबाकि परिवार के लोगों में बांट दे। जो ब्राह्मण यह पूजा करें उनको दक्षिणा दें और स्वयं उनको अपने हाथ से भोजन कराएं।
गणेश जी विघ्नहर्ता भी हैं और मनोवांछित फल भी देते हैं और कार्य सिद्धि के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण देवता है। गणेश जी की आराधना करते समय भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु मुझे बुद्धि, विद्या, तथा रिद्धि सिद्धि से संपन्न करें और हमारे विघ्नों का नाश करें। विशेष कृपा के लिए श्रद्धालु श्री गणेश सहस्त्रनाम का उच्चारण करे। इसमें 1000 नाम दिए हुए हैं, इन हजार नामों को पढ़ते हुए आप या तो भगवान पर लड्डू चढ़ा सकते हैं या दुर्बादल चढ़ा सकते हैं। मूलतः गणेश जी की आराधना करनी चाहिए और ग्रंथों में जो विवरण है गणेश जी का उसी विवरण के देवता की पूजा आराधना होनी चाहिए। अगर आपके घर में कोई मॉडर्न आर्ट के नाम पर गणेश जी की कोई प्रतिमा या फोटो है तो उनकी पूजा ना करके उन्हें मात्र सजाने के उद्देश्य से घर में सजा लें और पूजन के लिए शास्त्र सम्मत देवता ही रखे।