दुर्गा-पूजा में प्रतिदिन का वैशिष्ट्य महत्व है और हर दिन एक देवी का है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा होगी। 2 अक्टूबर सप्तमी को कालरात्रि माता की पूजा होगी। कई लोगो में भूत प्रेत का आना देखा गया है, हलाकि इसका मनोवैज्ञानिक और चिकित्सा जगत में इलाज बताया गया है फिर भी हम देवी देवता को भी साधते ही है। इसमें जैसे की बगलामुखी माता का जप भी चमत्कारी परिणाम देता है ठीक उसी प्रकार माँ कालरात्रि का भी विशेष महत्व है।
नवरात्रो में सातवीं शक्ति है माँ कालरात्रि और इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला और भयाभव है। बाल बिखरे हुए और गले में चमकने वाली माला है। जब जिंदगी में हर ओर अंधकार हो और रौशनी की एक भी किरण अवशेष न रह जाएं तब उस अंधकारमय स्थिति का विनाश करने वाली शक्ति है माँ कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली महाशक्ति है माँ कालरात्रि।
देवी के तीन गोल गोल नेत्र है। इनकी सांसों से अग्नि निकलती है। उनकी सवारी गरधब हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिने तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है निडरता और निर्भयता को दर्शाते है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। देवी का रूप भले ही भयंकर हो पर देवी शुभ फल देनेवाली मां हैं।
कालरात्रि देवी की उपासना का फल
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और सारी असुरी शक्तिया उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं और दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। जन्मा पत्रिका में अगर ग्रहो के कारन कोई बाधा हो रही हो तो भी देवी उन्हें दूर करती हैं। यहाँ तक की जीवन में अग्नि , जल, जंतु, रात और शत्रु के भय से मुक्ति दिलाती है।
कलयुग में कौन कौन से देवता और देवी है जो प्रत्यक्ष फल देते है
काली, भैरव तथा हनुमान जी ऐसे देवी व देवता हैं, जो शीघ्र ही जागृत होकर भक्त को मनोवांछित फल देते हैं।
कथा
दुर्गा सप्तशती में महिसासुर के वध के समय मां भद्रकाली की कथा का वर्णन है। महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर बाणो की वर्षा करने लगे, तब देवी ने अपने बाणों से न केवल उस बाण समूह को काट डाला बल्कि राक्षसों के घोड़े, सारथियों को मार गिराया राक्षसों के धनुष एवं ध्वजा को भी काट गिराया। माँ को भद्रकाली भी कहते है। माँ भद्रकाली ने राक्षसों के अंगो को भी शूलों से छलनी कर दिया।