ये है देश सेवा का जज्बा! जिस बटालियन में पिता शहीद हुए, बेटा भी उसी का हिस्सा बना

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कहते हैं कि जिसके खून में ही देश सेवा का जज्बा हो उसे भला कौन रोक सकता है। कारगिल युद्ध में शहीद हुए सेलाकुई निवासी कृष्ण बहादुर थापा के बेटे को ही लीजिए। पिता के शहीद होने के बाद जब उसने पिता के शहादत और शौर्य के किस्से सुने तो वह भी अपने कदम फौज में जाने से नहीं रोक पाए। वह बारहवीं के बाद बीबीए कर रहा था। सेना की भर्ती खुली तो उससे रहा नहीं गया और पहले ही प्रयास में सेना में शामिल हो गया। इसे संयोग ही कहेंगे कि जिस बटालियन में रहते हुए उनके पिता शहीद हुए वह भी उसी 4/3 जीआर बटालियन में बतौर नायक अपनी सेवाएं दे रहा है।

हाई स्कूल के बाद ही गोरखा रेजीमेंट में भर्ती

देश के वीर सपूत नायक कृष्ण बहादुर थापा का जन्म 24 जून 1964 में सेलाकुई निवासी मोहन सिंह थापा के घर पर हुआ था। हाईस्कूल पास करने के बाद वह गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हो गए। ऑपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर को मुक्त कराते हुए वह 11 जुलाई 1999 को शहीद हो गए थे। शहीद होने के बाद वह अपना भरा पूरा परिवार पीछे छोड़ गए थे। जब वह शहीद हुए तो उनका बेटा मयंक मजह सात साल का था। उनके परिवार में उसका छोटा भाई करन भी मात्र पांच साल का था। शहीद की पत्नी मीरा देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो तब बच्चों को ज्यादा समझ नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे वह बड़े होते गए तो आसपास के लोगों से पिता की शहादत और उनके शौर्य के किस्से सुनने को उन्हें मिलते थे। बतौर मयंक पिता के शौर्य के किस्से सुनकर उन्होंने भी पिता के नक्शे कदमों पर चलने का निर्णय लिया। वर्ष 2012 में वह बीबीए कर रहे थे।

इस दौरान उन्हें बनारस में फौज में भर्ती निकलने की सूचना मिली। जिसके बाद वह पढ़ाई बीच में छोड़ बनारस जा पहुंचे। जहां पहले ही प्रयास में वह फौज में शामिल हो गए। शहीद की पत्नी मीरा थापा का कहना है कि जब पति के शहीद होने की सूचना मिली तो उनके दोनों बेटे बहुत छोटे थे। पति के जाने के बाद उनका सारा जीवन संघर्ष में बीता। इस दौरान हमेशा अपने बच्चों को पिता की राह पर चलने की सीख दी। जिसका नतीजा यह है कि आज उनका बड़ा बेटा फौज में हैं जबकि, छोटा बेटा करन थापा घर पर रह कर व्यवसाय और उनकी सेवा कर रहा है।

मां को टीस, सरकार का वादा आज तक नहीं हुआ पूरा

शहीद कृष्ण बहादुर थापा की पत्नी मीरा देवी कहना है कि भगवान की कृपा से उनका परिवार आज सही तरीके से अपना जीवन-बसर कर रहा है। सरकार भी हर साल उन्हें कारगिल दिवस पर सम्मानित करती है, लेकिन इन 25 सालों में घर के एक सदस्य को नौकरी का वादा सरकार आज तक पूरा नहीं कर पाई। जबकि वह इसके लिए कईं बार इधर-उधर चक्कर काट चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से शहीद की पत्नी को सम्मान राशि दी जा रही है। उसमें 25 साल में कोई बढोतरी नहीं हुई है।

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