24 साल का सफर पूरा करके शनिवार को उत्तराखंड रजत जयंती वर्ष यानि 25 वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगा। लेकिन, 24 साल बाद भी उत्तराखंड को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है। देशदुनिया में देवभूमि, वीरभूमि के रूप में विख्यात उत्तराखंड का 24 साल का सफर काफी विडंबनापूर्ण रहा है।
पहाड़ के विकास की अवधारणा पर बने उत्तराखंड में आर्थिक प्रगति की दौड़ पहाड़ के जिले ही काफी पिछड़ गए हैं। अर्थ संख्या विभाग के आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो केवल हरिद्वार, उधमसिंहनगर, देहरादून और नैनीताल ने ही बेहतर आर्थिक तरक्की की है।
बाकी पहाड़ में हालात आज भी ज्यादा संतोषजनक नहीं है। हरिद्वार और यूएसनगर की प्रतिव्यक्ति आय इस वक्त रुद्रप्रयाग और बागेश्वर के मुकाबले चार गुना तक ज्यादा है। शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझते स्कूल लगातार बंद होते चले गए और उनकी जगह प्राइवेट स्कूलों ने ले ली।
स्वास्थ्य की दृष्टि से मैदानी जिलों में तो काफी बदलाव आया है। पहाड़ के लोग आज भी स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। कई कई मीलों दूर कंधों पर लादकर लाए जाते मरीजों की तस्वीरें आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनती आ रही हैं।
परिवहन सेक्टर में भी पहाड़ शुरू से ही पिछड़ता चला गया। राज्य गठन के वक्त राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में जिन रूटों पर रोडवेज की बसें चला करती थी, वो धीरे धीरे बंद होती चली गई। आज कुछ प्रमुख रूटों पर ही रोडवेज की बसें नजर आती हैं।
राज्य गठन के बाद से राज्य में कृषि का क्षेत्रफल 27 प्रतिशत तक घट गया है। जहां राज्य गठन के वक्त राज्य में कृषि भूमिक का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था। वो आज घटकर महज 5.68 हैक्टेयर रह गया है। बागवानी में भी यही हाल है। इसमें 54 फीसदी तक क्षेत्र घट चुका है।
24 साल बाद भी स्थायी राजधानी न बन पाई
उत्तराखंड को पृथक राज्य बने 24 साल का वक्त पूरा हो चुका है, लेकिन राज्य आज तक अपनी राजनीति तक तय नहीं कर पाया है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी जरूर घोषित कर दिया गया है। लेकिन देहरादून के साथ अस्थायी राजधानी का टैग आज तक नहीं हटा।
देहरादून में भी वर्तमान विधानसभा भवन के साथ ही रायपुर में जमीन चिहनित हो चुकी है। आंदोलनकारियों की भावनाएं शुरू से गैरसैंण के साथ ही जुड़ी थी, लेकिन 24 साल का हासिल यह है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी तो बनाया गया है। लेकिन पिछले 10 साल में गैरसैंण में केवल 37 दिन ही विधानसभा का सत्र चला है।
कोई ब्रांड भी न पाया उत्तराखंड राज्य
राज्य गठन के बाद नीति नियंता कोई ऐसा क्षेत्र भी तय नहीं कर पाए जिसमें उत्तराखंड एक लीडर की तरह आगे बढ़ सके। ऊर्जा प्रदेश कहलाए जाने वाला उत्तराखंड खुद बिजली के लिए तरसता है। फिर पर्यटन प्रदेश नाम दिया जाने लगा। पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। लेकिन संसाधनों के नाम पर आज भी हालात ठीक नहीं है। देहरादून से मसूरी और हल्द्वानी से नैनीताल रोड पर लगने वाले जाम इसकी खुद तस्दीक कर देते हैं। जड़ीबूटी, आर्गनिक प्रदेश, एजुकेशन हब समेत कई उपमाएं प्रचारित होती रही, लेकिन कोई एक भी साकार नहीं हो पाई।