क्षार-सूत्र चिकित्सा प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिससे बवासीर, भगन्दर, फ़िशर तथा अन्य गुदामार्गगत रोगों का स्थाई उपचार किया जाता है। क्षार-सूत्र को स्व. डॉ. पी. जे. देशपाण्डे जी (1964 बी.एच.यू.) ने एक नवीन रूप में विभिन्न प्रकार की शोध प्रक्रियायों के द्वारा विकसित किया तथा गुदामार्गगत रोगों में इसकी उपयोगिता को भी सिद्ध किया। क्षार-सूत्र को 3 औषधियों (मुख्यतः स्नुही क्षीर के 11 लेप, अपामार्ग क्षार के 7 लेप, हरिद्रा चूर्ण के 3 लेप) को एक दृण सर्जिकल सू़त्र में, 21 बार लेप करके लगभग 1 माह में तैयार किया जाता है।
यह एक खास चिकित्सा प्रक्रिया है, इस विधि में रोगी को अपने दैनिक कार्यो में कोई परेशानी नहीं होती है, उसका इलाज चलता रहता है और वह अपने सामान्य काम पहले की भांति ही कर सकता है इलाज के दौरान अस्पताल में भर्ती होने की आव्यश्कता नहीं पड़ती बस कुछ सावधानियों एवं निर्देशों का पालन करना होता है। बवासीर के रोगियों को एक बार क्षार-सू़त्र बांधने के बाद बवासीर के मस्से गिरने तक आव्यश्कतानुसार ड्रेसिगं के लिये आना पड़ता है, भगन्दर के रोगियों में प्रति सप्ताह पुराने क्षार-सूत्र के स्थान पर नया क्षार-सूत्र डाला जाता है।
अपने समकक्ष प्रचलित अन्य चिकित्सा प्रक्रियायों की तुलना में यह सर्वाधिक सुरक्षित, सफल एवं उपयोगी चिकित्सा होने के साथ-साथ इसमें उपद्रव होने की सम्भावना भी नगण्य होती है। चूंकी दर्द की अनुभूति हर रोगी में अलग-अलग होती है अतः यह कह पाना कि कितना दर्द होगा, सम्भव नहीं है। अन्य प्रक्रियायों की तरह ही इसमें थोड़ा बहुत दर्द हो सकता है किसी भी रोग के सही होने का समय रोग एवं रोगी की स्थिति पर निर्भर करता है। सामान्यतः बवासीर, फ़िशर आदि रोगों में रोगी 10-15 दिनों में ठीक हो जाते हैं तथा भगन्दर के ठीक होने का समय रोग की जाँच के बाद ही बताया जा सकता है।
रोगी को चाहिए कि ठीक होने तक हल्का एवं सुपाच्य भोजन करे, तला-भुना, मसालेदार भोजन, मैदा युक्त पदार्थों, एरिएटेड ड्रिंक्स एवं मांसाहार का सेवन न करें। इसके अतिरिक्त कब्ज़ न होने दे तथा मल त्याग करते समय जरुरत से अधिक जोर न लगायें। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, ताजे फल, पानी, जूस आदि का सेवन अधिक से अधिक करे। इसके साथ-साथ कपालभाति योग, वज्रासन आदि उपयोगी योगासन करें, 2 पहिया वाहनों का प्रयोग, ज्यादा देर तक एक ही मुद्रा में बैठे रहना तथा भारी वजनदार सामान उठाना भी वर्ज्य कर देना चाहिए। इलाज के दौरान कुछ आवश्यक औषधियां ही लेनी चाहिए। अन्य सभी प्रचलित चिकित्सा प्रक्रियायों की तुलना में सरल, सुरक्षित, लाभप्रद, सटीक चिकित्सा होने के बावजूद क्षार-सूत्र चिकित्सा का खर्च एवं समयावधि दोनों ही काफी कम होते हैं। व्यवाहरिक तौर पर देखा गया है कि बवासीर, फ़िशर की प्रारम्भिक अवस्था वाले रोगियों के सिवा अन्य अवस्थायों के रोगियों का रोग दवाओं से ठीक नहीं होता है। लोग वर्षो तक ठीक होने की आशा में तरह-तरह की दवाओं का प्रयोग करते रहते है, परन्तु इससे उन्हें मात्र कुछ समय तक ही आराम मिल पाता है जबकी उनका रोग अन्दर ही अन्दर बड़ता जाता है। कई बार रोगी सब कुछ जानते हुए सर्जरी के भय से या ज्यादा खर्च की वजह से भी समय रहते चिकित्सा नहीं कराते जिस वजह से उन्हें स्थाई समाधान नहीं मिल पाता या कई रोगी गलत तरह के ईलाजों में फसकर अपने रोग को अत्यधिक जटिल कर लेते हैं जिसके चलते उन्हें अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
क्षार-सूत्र चिकित्सा सभी प्रकार के गुदा से सम्बन्धित रोगों में पूर्ण रुप से सफल एवं सुरक्षित है, यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली (AIIMS), बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (BHU), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), Central Council of Research In Ayurvedic Sciences (CCRAS) पी.जी.आई. चन्डीगण, जैसे संस्थानों द्वारा किये गए अनेक शोधों और क्लिनिकल ट्रायल द्वारा सिद्ध हो चुकी है, ‘‘क्षार-सूत्र’’ आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, द्वारा प्रमाणित है एवं अब रिसर्च के बाद आधुनिकतम पद्धति द्वारा भी क्षार-सूत्र की प्रमाणिकता सिद्ध हो चुकी है।
क्षार-सूत्र चिकित्सा के द्वारा, मल त्याग की क्रिया को नियन्त्रित करने वाली गुद वलियों के कट जाने का खतरा नहीं होता और न ही मल नियन्त्रण की क्रिया में कोई बाधा आती है। इस विधि से सही हुए रोगो के दोबारा होने की सम्भावना 0-1.5% ही होती है जो कि चिकित्सा की दृष्टि से नगण्य है जबकी अन्य पद्धतियों में यही सम्भावना कहीं अधिक होती है क्षार-सूत्र पर किये गये स्नुही क्षीर एवं अपामार्ग क्षार के लेप बवासीर के मस्सो, भगन्दर आदि की कटिंग करने एवं संक्रमण (इन्फेक्शन) को खत्म करने का कार्य करते है, हरिद्रा के लेप क्षार-सूत्र से हुयी कटिंग के कारण बने घाव को भरने का कार्य करते है। इस प्रकार क्षार-सूत्र विधि द्वारा की गयी चिकित्सा में तीनों कार्य एक साथ चलते रहते है इस कारण से रोग के दुबारा होने की सम्भावना नगण्य होती है जबकी अन्य उपचार की विधियों में पहले कटिंग करने के बाद दवाओं के माध्यम से घाव को भरने एवं संक्रमण को रोकने की कोशिश की जाती है।