हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। दिलचस्प तर्क-वितर्क हुए। मामला कर्नाटक का है जहां हाईकोर्ट ने सरकार के इस आदेश को जारी रखा है कि कॉलेज परिसर में यूनिफॉर्म पहनकर ही आना होगा। हिजाब या हेड स्कार्फ नहीं चलेगा। जब वकील ने तर्क दिया कि क्या किसी धार्मिक प्रथा को यूनिफॉर्म के नाम पर रोका जा सकता है?
जस्टिस गुप्ता ने इस पर सवाल किया कि जिस तरह यह एक सवाल है कि स्कार्फ पहनना एक धार्मिक प्रथा हो सकती है या नहीं, उसी तरह सवाल यह भी है कि सरकार ड्रेस कोड को रेगुलेट कर सकती है या नहीं? जब एक वकील ने कहा कि इस न्यायालय में भी लोग पगड़ी पहनकर वकालत करते रहे हैं तो न्यायाधीश ने कहा- पगड़ी को आप धर्म से मत जोड़िए। इसे किसी भी धर्म का व्यक्ति पहन सकता है। पगड़ी शाही घरानों में पहनी जाती थी। इसका धर्म से लेना-देना नहीं है।
वैसे भी हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। क्या एक धर्मनिरपेक्ष देश के किसी सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहने जा सकते हैं? जैसे आप गोल्फ कोर्स जाते हैं और वहां का कोई ड्रेस कोड है तो क्या आप कह सकते हैं कि मैं तो अपनी पसंद के कपड़े पहनकर ही जाऊंगा? बहस रोचक है और तर्कसंगत भी। सही है, अगर कहीं कोई यूनिफॉर्म निर्धारित है तो आप धर्म के नाम पर उसे बेमानी नहीं बता सकते। आपको उस यूनिफॉर्म का आदर करना चाहिए और पहनना भी चाहिए।
कल को कोई क्रिकेटर चाहे वह कितना ही अच्छा बल्लेबाज हो या कितना ही सधा हुआ बॉलर हो, वह कहे कि मैं तो बरमूडा पहनकर ही क्रिकेट खेलूंगा तो क्या वह ऐसा कर पाएगा? नहीं। क्योंकि क्रिकेट काउंसिल उसे इसकी इजाजत कतई नहीं देगी। दी भी नहीं जानी चाहिए। फिर किसी स्कूल और कॉलेज में हिजाब पहनकर कोई कैसे आ सकता है? तर्क यह हो जाता है। बहरहाल, हिजाब का झगड़ा पुराना है और इसके राजनीतिक मायने भी हो सकते हैं। हो सकता है कोई पार्टी लाइन भी इसके पीछे काम कर रही हो, लेकिन तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो यह फिजुल का मुद्दा है। यूनिफॉर्म अगर तय है तो उसका पालन होना चाहिए। चाहे उसमें हिजाब शामिल हो या उस पर प्रतिबंध ही क्यों न हो!
वर्ना एक शिक्षण संस्थान में इतनी तरह के कपड़े पहनकर लोग आने लगेंगे कि पहचानना मुश्किल हो जाएगा। कोई तिलक लगाकर आएगा। कोई धोती पहनकर। कोई लुंगी पर ही चला आएगा और कोई बुर्के में। संस्थान या उसकी यूनिफॉर्म की कोई मर्यादा नहीं रह जाएगी। इसलिए होना यह चाहिए कि जिसका जो भी धर्म हो, वह निर्विरोध रूप से उसका पालन करे। लेकिन उसे अपने घर, समाज और धार्मिक स्थलों तक सीमित रखे। शिक्षण संस्थानों में अगर आप जा रहे हैं तो वहां की मर्यादा का पालन करना ही चाहिए। सभी धर्मावलंबी इसका पालन करेंगे तो विवाद का कोई कारण उपजेगा ही नहीं। यही रास्ता है जिसे हम आसानी से समझ सकते हैं और सफलतापूर्वक निभा भी सकते हैं।