विदेश में नौकरी के नाम पर चरा रहे बकरियां..

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कमाई के सपने लेकर हरलाखी के तीन युवक कुवैत गए। जाने को पैसे नहीं थे तो परिजनों ने कर्ज लिया। एजेंट को मोटी रकम दी। एजेंट ने भी खूब सपने दिखाए। परिजनों को उम्मीद बंधी कि बेटा कमाएगा तो परेशानी खत्म हो जाएगी। लेकिन कर्ज लेकर जिस एजेंट पर भरोसा जताया, उसने धोखाधड़ी की। बेटा विदेश तो गया लेकिन वहां अच्छी नौकरी के बजाय वह बकरी चराने को मजबूर है। न समय से भोजन मिलता है और न ही सैलरी। अब कुवैत में फंसे युवक देश लौटने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं तो यहां परिजन बेटे की सलामती के साथ कर्ज के बोझ तले दबकर परेशान हैं।

ताजा मामला हरलाखी प्रखंड के कान्हरपट्टी गांव का है। भारत-नेपाल सीमा से सटे गांवों में इस तरह का धंधा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। एजेंट व बिचौलिए का नेटवर्क गांव-गांव में फैला है। एजेंट भोले-भाले बेरोजगार युवकों को फंसाकर उसे सपने दिखाते हैं और उससे मोटी रकम ऐंठ लेते हैं। युवकों को ठगे जाने का अहसास तब होता है, जब वह अपने वतन से दूर खाने-पीने की तंगी से जूझने लगता है।

कान्हरपट्टी गांव के कुद्दुस मंसूरी के 26 वर्षीय पुत्र रहीम मंसूरी और उसका पड़ोसी मो. जैनुल अच्छी कमाई की चाह में कुवैत गये। वहां उसे एजेंट के बताए अनुसार काम के बजाय बकरी चराने का काम मिला। कुवैत में काम कर रहे रहीम मंसूरी ने व्हाट्सएप पर फोटो और वीडियो भेजकर अपने बारे में बताया कि उसके गांव के ही एजेंट ने अच्छे काम का प्रलोभन देकर उससे एक लाख 40 हज़ार रुपये लिया था। लेकिन कुवैत में उससे जबरन बकरी चराने का काम लिया जा रहा है। उसके गांव के ही एजेंट ईदवा मंसूरी और नईम मंसूरी ने बोला था कि विदेश में उसे बेहतर काम दिया जाएगा और 27 हज़ार रुपये (आईसी) हर महीने सैलरी मिलेगी। यहां डेढ़ सौ बकरियां व अन्य मवेशियों को चराने को मजबूर हैं। सैलरी भी ठीक से नहीं मिल रही है।

परिजनों ने बताया कि बेटे को कर्ज लेकर विदेश भेजा था। छह महीने हो चुके हैं। पैसे तो दूर बेटे को खाना भी नसीब नहीं हो रहा है। अब उसने भारत सरकार से अपने देश लौटने को मदद की गुहार लगाई है। उन्होंने बताया कि मेरे साथ मो. जैनुल और हुर्राही गांव का एक युवक इसी काम में फंसा है। वहीं, एजेंट ईदवा मंसूरी और नईम मंसूरी ने बताया कि आरोप गलत है। युवक को बेहतर काम मिला है। पैसे वापस लेने के लिए इस तरह का आरोप लगा रहा है। 

दो शिफ्ट में कराया जा रहा है काम

रहीम मंसूरी ने बताया कि उससे यह काम दो शिफ्ट में काम कराया जाता है। पहला शिफ्ट सुबह 6 से 12 बजे तक कराया जाता है। दूसरा शिफ्ट साढ़े 3 बजे से शाम 7 बजे तक कराया जाता है। भोजन की व्यवस्था भी खुद करना पड़ता है। इसकी शिकायत करने पर यहां कोई नहीं सुनता। उल्टे डांट पड़ती है।

एजेंटों ने काम के हिसाब से तय कर रखी है कीमत 

विदेश भेजने के नाम पर एजेंटों की कीमत तय है। मजदूरी के लिए एक लाख, वेटर और हेल्पर के काम के लिए 1 लाख 40 हज़ार, ड्राइविंग के लिए 1 लाख 50 हज़ार, शॉपिंग मॉल में काम के लिए 1 लाख 75 हज़ार व सुपरवाइजर के काम के लिए 2 लाख रुपये एजेंट लेते हैं। इसके बावजूद आए दिन धोखाधड़ी होती है।

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