प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त में पांच प्रण दिए थे। उसमें उन्होंने कहा था कि गुलामी की जितनी भी निशानियां हैं उससे मुक्ति पाना सबसे पहले काम है। गुलामी की सबसे बड़ी निशानी होने का ठप्पा आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंश एक्ट पर था। 1830, 1856, 1872 उस दौरान इन सब चीजों को लाया गया और हम अब तक ढो रहे थे। आईपीसी का असल में नाम आयरिश पीनल कोड था।
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ये बात तो सभी जानते हैं कि अंग्रेज हिन्दुस्तान की जनता को सहूलियत देने के लिए कानून नहीं बनाते थे। किस तरह से हम सभी को सिस्टम के प्रति एक गुलाम की तरह ट्रीट करे। संविधान तो तैयार कर लिया गया लेकिन अपराध और अपराधियों को पकड़ने का सिस्टम अंग्रेज के जमाने से था। एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही था। लेकिन भारत के गृह मंत्री ने ऐसा काम किया है। गुलामी की जंजीरों से पूरे सिस्टम को आजादी दी है।
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मॉब लिंचिंग के लिए मृत्युदंड
शाह ने संसद को यह भी बताया कि केंद्र मॉब लिंचिंग के मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान लागू है। जब पांच या अधिक व्यक्तियों का एक समूह एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर हत्या करता है तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा। नए प्रावधान में कहा गया है कि आजीवन कारावास या सात साल से कम की कैद नहीं होगी और जुर्माना भी देना होगा।
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धर्म छुपाकर शादी करने वाला जेल की हवा खाएगा
इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ अपराध और उनके सामने आने वाली कई सामाजिक समस्याओं का समाधान किया गया है। प्रस्तावित कानून में पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने के अलावा रोजगार, पदोन्नति के झूठे वादे के तहत महिलाओं के साथ पहली बार संबंध बनाना अपराध होगा। यौन हिंसा के मामलों में बयान महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट ही करेगी। गैंगरेप के मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा।
तीन नए क्रिमिनल लॉ बिल पर क्या बोले अमित शाह
लोकसभा ने बुधवार को तीन संशोधित आपराधिक कानून विधेयक पारित किए, जिनका उद्देश्य देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करना और भारतीय सोच पर आधारित न्याय प्रणाली स्थापित करना है। विधेयक में भारतीय न्याय संहिता भारतीय दंड संहिता को बदलने का प्रस्ताव करती है, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता आपराधिक प्रक्रिया संहिता को बदलने का प्रयास करती है और भारतीय साक्ष्य संहिता भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेती है। लोकसभा में विधेयकों को पेश करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मौजूदा आपराधिक कानून न्याय प्रदान करने के बजाय दंडित करने के इरादे से औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाते हैं। अमित शाह ने कहा कि भारतीय दंड संहिता का उद्देश्य दंड देना था, न्याय नहीं; इसके स्थान पर भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 सदन से पारित होने के बाद देश में लागू होगी। गृह मंत्री ने कहा कि नए आपराधिक कानून विधेयक संविधान की भावना के अनुरूप हैं।
अब राज्यसभा की बारी
विधेयकों को शुरू में संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन बाद में वापस ले लिया गया। अमित शाह ने पिछले हफ्ते लोकसभा में संशोधित बिल दोबारा पेश किया। लोकसभा से पास होने के बाद अब बिल को राज्यसभा में 21 नवंबर को पेश किया जाएगा।