आपातकाल के 50 वर्ष : नसबंदी के डर से बड़े छोड़ देते थे गांव, बच्चों तक को घरों में छिपाकर रखती थीं माताएं

0
188

देश में पचास वर्ष पहले 25 जून 1975 को लागू किए गए आपातकाल के गवाह बने लोग आज भी उस दौर को याद करके सिहर उठते हैं। उनके लिए यह किसी जंग से कम नहीं था। पहले गांवों-सड़कों में जगह-जगह नंग-धड़ंग बच्चे खेलते मिल जाते थे। लेकिन आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी की घटनाओं में तेजी आने के बाद मांएं अपने छोटे-छोटे बच्चों तक को कपड़े पहनाकर रखतीं। यहीं नहीं, कई बार तो उन्हें घर में ही छिपाकर रखती थीं। 

आपातकाल के दौरान चला नसबंदी का अभियान आज भी सार्वजनिक स्वास्थ्य चर्चा का विषय रहता है। अकेले वर्ष 1976 में ही पूरे देश में 80 लाख लोगों की नसबंदी की गई, जिसमें अधिकांश पुरुष थे। ज्यादातर लोगों की नसबंदी उनकी इच्छा के बिना ही की गई। यहां तक, कई ऐसे युवकों की नसबंदी कर दी गई, जिनकी शादी तक नहीं हुई थी।

अलीगढ़ की रहने वाली 83 वर्षीय अमीना हसन बताती हैं, हम गरीब थे लेकिन हमारी भी कुछ गरिमा थी। उन्होंने उसे भी छीन लिया। अमीना हसन बताती है कि जब सरकारी अधिकारी इलाके में आते तो पुरुष खेतों और कुओं में छिपने लग जाते थे, क्योंकि वह उन्हें जबरन पकड़कर ले जाते और नसबंदी करा देते थे। हमें एक लंबे समय तक जबर्दस्त दबाव झेलना पड़। दिल्ली के ओखला की रहने वाली 78 वर्षीय इशरत जहां ने कहा, यह बहुत ही काला दौर था। यह किसी युद्ध से कम नहीं था। हमें पता नहीं होता था कि अगले दिन क्या होगा। 

नौकरी बचाने के लिए भी करानी पड़ी नसबंदी
उस दौर को याद करते हुए एक कर्मचारी ने बताया, अधिकारियों ने कहा कि आप अपनी नौकरी तभी रख सकते हैं, जब आप नसबंदी करा लें। मेरे पास सोचने का समय नहीं था। मैंने सहमति दे दी, क्योंकि मुझे अपनी नौकरी बचानी थी और परिवार का पालन-पोषण करना था।

पुलिस ने गोलियां चलाने तक से  नहीं किया परहेज 
आपातकाल के दौरान दिल्ली के तुर्कमान गेट के पास एक हिंसक संघर्ष की घटना भी हुई। अप्रैल, 1976 में मुस्लिम बहुल इस इलाके के लोगों ने जब शहरी सौंदर्यीकरण अभियान के तहत कुछ ढांचा ढहाने और नसबंदी कराने से इन्कार कर दिया तो पुलिस ने गोलियां चला दीं। इसके बाद यहां के कई परिवार को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ा।

21 माह चला अध्यादेश राज, न्यायपालिका की शक्तियां घटीं  
इंदिरा गांधी सरकार आपातकाल के दौरान कुल 48 अध्यादेश लाई थी जिसमें आंतरिक सुरक्षा कानून अधिनियम (मीसा) में पांच संशोधन शामिल हैं। 29 जून 1975 को सरकार ने मीसा में बदलाव के लिए पहला अध्यादेश जारी किया। अगले दिन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने एक अध्यादेश भारत रक्षा अधिनियम (संशोधन) लागू किया, जिससे सरकार को देश में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज्यादा शक्तियां मिल गईं। 21 महीने तक चले इस अध्यादेश राज के दौरान कानून में संशोधनों ने केंद्र सरकार को ज्यादा ताकतवर बना दिया और न्यायपालिका की शक्तियां घट गईं।

संविधान में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष व अखंडता जैसे शब्द जोड़े 
सरकार ने कई बार संविधान में बदलाव किए जिसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को न्यायालयों की जांच से परे रखना तथा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़ना शामिल था। आपातकाल के दौरान संसद के संक्षिप्त सत्र आयोजित किए गए। कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत था और विपक्ष के कई नेता जेल में थे इसलिए कई अध्यादेशों को कानून बनाने के लिए आसानी से संसद से मंजूरी मिल जाती थी। हालांकि, बाद में अगली सरकार ने इन्हें निरस्त कर दिया।

…जब जनता सरकार लाई  खुद का कोला
वर्ष 1977 की गर्मियों में 21 महीने का आपातकाल के खत्म होने और देश पर करीब तीन दशकों का कांग्रेस शासन खत्म होने के बाद एक नई राजनीतिक ताकत उभरी और जनता पार्टी सत्ता में आई। नई सरकार ने कोका-कोला कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाया और डबल सेवन लॉन्च किया। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने देश में पहली बार इस कोला पेय पदार्थ को आर्थिक आत्मनिर्भरता के रूप में लॉन्च किया था। इसका निर्माण और मार्केटिंग  आधुनिक ब्रेड बनाने वाली कंपनी मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज  ने किया था, जो सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here